फसलों के लिए बायोकैप्सूल

प्रश्न-किस संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए एक बायोकैप्सूल विकसित किया है, जिसमें ऐस बग उपस्थित हैं जो भविष्य में किसानों द्वारा खेत में बायोफर्टिलाइजर के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं?
(a) केंद्रीय कृषि अभियांत्रिक संस्थान, भोपाल
(b) केंद्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पोर्ट ब्लेयर
(c) भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, केरल
(d) भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
उत्तर-(c)
संबंधित तथ्य
  • जुलाई, 2019 में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार केरल के कोझीकोड में स्थित भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए एक बायोकैप्सूल विकसित किया है।
  • यह उपलब्धि इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने दिनेश राघवन के नेतृत्व में हासिल की है।
  • इस बायोकैप्सूल में ऐसे बग (Bugs) उपस्थित हैं जो भविष्य में किसानों द्वारा खेत में बायोफर्टिलाइजर के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं।
  • इस तकनीक का उपयोग कर किसान भारी मात्रा में उपस्थित बायोफर्टिलाइजर को सूक्ष्म जीवों के इस कैप्सूल द्वारा प्रतिस्थापित कर सकने में सक्षम होंगे।
  • यह किसानों द्वारा किए जान सकने वाले लाभकारी माइक्रोबियता (सूक्ष्मजीव) उपभेदों की मात्रा को कम करने तथा उन्हें जैविक रूप से सक्रिय जीवों को वितरित करने का एक इष्टतम तरीका प्रदान करता है। साथ ही यह जीवों की जीवन सक्रियता को भी बढ़ाएगा।
  • चूंकि इस कैप्सूल में इन माक्रोबियल उपभेदों को निष्क्रिय अवस्था में बनाए रखा जाता है, इसलिए उन्हें कमरे के तापमान में व्यवहार्यता खोने की कोई चिंता नहीं होती है, जैसा कि कई तरल-आधारित जैव-ईंधन के साथ होता है।
  • ज्ञातव्य है वर्तमान में इस प्रकार की कोई भी तकनीक विश्व भर में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं है।
  • सूक्ष्मजीवों के जैव-निरूपण पर सफल जांच काफी हद तक प्रयोगशाला तक ही सीमित है, अभी तक ऐसा कोई व्यावसायिक उत्पादन बाजार में उपलब्ध नहीं है।
  • इस तकनीक से बने बायोकैप्सूल का वजन सिर्फ एक ग्राम है।
  • यद्यपि अन्य सूक्ष्मजीवों वाले पाउडर-आधारित बायोफर्टिलाइजर 1 किग्रा. या 1 लीटर की बोतल की पैक में मौजूद हैं।
  • इसका उपयोग किसी भी प्रकार के खेत के अनुकूल रोगाणुओं को पैक करने हेतु किया जा सकता है, जिसमें नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टिरिया, सोलूबोलिस फॉस्फेट, माइक्रोन्यूट्रिएंटस और कवक शामिल हैं, जो रोगजनको को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करते हैं।
  • लाभकारी रोगाणुओं के प्रयोग से उर्वरक के उपयोग में 25 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
  • कर्नाटक स्थित एक फर्म ने सूक्ष्मजीवों से युक्त बायोकैप्सूल विकसित किए है जिनका उपयोग विभिन्न बागवानी, सजावटी और मसालों की फसलों के लिए किया जा सकता है।

लेखक-विजय प्रताप सिंह

संबंधित लिंक भी देखें…

https://icar.org.in/hi