कंपनी अधिनियम, 2013 के दांडिक प्रावधानों की समीक्षा करने वाली समिति की अंतिम रिपोर्ट

प्रश्न-हाल ही में कंपनी अधिनियम, 2013 के दांडिक प्रावधानों की समीक्षा करने वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट केंद्रीय, वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली को सौंपी। इस समिति के अध्यक्ष थे-
(a) इंजेती श्रीनिवास
(b) उदय कोटक
(c) टी.के. विश्वनाथन
(d) अजय बहल
उत्तर-(a)
संबंधित तथ्य

  • 27 अगस्त, 2018 को कंपनी अधिनियम, 2013 के दांडिक प्रावधानों की समीक्षा करने वाली समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली को सौंपी।
  • गौरतलब है कि 15 जुलाई, 2018 को केंद्र सरकार ने कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव इंजेती श्रीनिवास की अध्यक्षता में इस 10 सदस्यीय समिति का गठन किया था।
  • समिति की प्रमुख सिफारिशे इस प्रकार हैं-
    (i) समिति ने सभी दंड विषयक प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण किया जिन्हें अपराधों की प्रकृति के आधार पर उस समय आठ श्रेणियों में बांट दिया गया था।
    (ii) समिति ने सिफारिश की कि छह श्रेणियों को शामिल करते हुए गंभीर अपराधों के लिए वर्तमान कठोर कानून जारी रहना चाहिए, जबकि दो श्रेणियों के अंतर्गत आने वाली तकनीकी अथवा प्रक्रियात्मक खामियों के लिए निर्णय की आंतरिक प्रक्रिया होनी चाहिए।
    (iii) समिति द्वारा राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) को इसके के समक्ष मौजूदा शमनीय अपराधों की संख्या में पर्याप्त कटौती के जरिए मुक्त करने की सिफारिश की गई है।
    (iv) 81 शमनीय अपराधों में से 16 को विशेष अदालतों के अधिकार क्षेत्र से हटाकर आंतरिक ई-निर्णय के लिए अपराधों की नई श्रेणियां बनाना जहां अधिकृत निर्णय अधिकारी (कंपनियों के रजिस्ट्रार) चूककर्ता पर दंड लगा सकेंगे।
    (v) शेष 65 शमनीय अपराध अपने संभावित दुरुपयोग के कारण विशेषज्ञ अदालतों के अधिकार क्षेत्र में ही रहेंगे।
    (vi) इसी प्रकार गंभीर कॉर्पोरेट अपराधों से जुड़े सभी अशमनीय अपराधों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने की सिफारिश की गई है।
    (vii) फैसलों का ई-अधिनिर्णय और ई-प्रकाशन करने के लिए पारदर्शी ऑनलाइन मंच तैयार करना।
  • कॉर्पोरेट अनुपालन और कॉर्पोरेट शासन से जुड़ी अन्य प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं-
    (i) ‘मुखौटा कंपनियों’ (Shell Companies) से बेहतर तरीके से निपटने के व्यावसायिक प्रावधानों की दोबारा शुरुआत की घोषणा करना।
    (ii) सार्वजनिक जमा के संबंध में बृहत्तर प्रकटीकरण, विशेष तौर पर ऐसे लेन-देन के संबंध में जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुच्छेद 76 के अंतर्गत सार्वजनिक जमा की परिभाषा से मुक्त कर दिया गया है।
    (iii) सृजन, सुधार और लेनदान के अधिकार से जुड़े दस्तावेजों को भरने के लिए समय-सीमा में भारी कटौती तथा जानकारी नहीं देने के लिए दंड विषयक कड़े प्रावधान।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में कॉर्पोरेट शासन प्रणाली जैसे कि व्यवसाय शुरू करने की घोषणा, पंजीकृत कार्यालय का संरक्षण, जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा, पंजीकरण और शुल्क प्रबंधन, हितकारी स्वामित्व की घोषणा और स्वतंत्र निदेशकों की स्वतंत्रता से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को शामिल किया गया है।

संबंधित लिंक…
http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=183079