आईपीसीसी की छठी समीक्षा रिपोर्ट

प्रश्न-9 अगस्त‚ 2021 को जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की छठी समीक्षा रिपोर्ट जारी की गई। इससे संबंधित निम्न कथनों पर विचार कीजिए-
(i) इस रिपोर्ट का शीर्षक “AR6 Climate Change 2021: The Physical Science Basis है।
(ii) रिपोर्ट के अनुसार‚ मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक सतह तापमान में 1850-1900 की अवधि की तुलना में 2011-2020 की अवधि में 1.09ºC की वृद्धि दर्ज की गई है।
(iii) आईपीसीसी का गठन वर्ष 1988 में हुआ था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल (i) एवं (ii)
(b) केवल (ii) एवं (iii)
(c) केवल (i) एवं (iii)
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर—(d)
संबंधित तथ्य

  • 9 अगस्त‚ 2021 को जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की छठी समीक्षा रिपोर्ट जारी की गई।
  • इस रिपोर्ट का शीर्षक “AR6 Climate Change 2021: The Physical Science Basis” है।
  • यह रिपोर्ट 66 देशों के 234 वैज्ञानिकों ने तैयार की है।
  • रिपोर्ट की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं-
  • रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी की जलवायु इतनी गर्म होती जा रही है कि एक दशक में तापमान संभवत: उस सीमा के पार पहुंच जाएगा, जिसे दुनिया भर के नेता रोकने का आह्वान करते रहे हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र ने इसे “मानवता के लिये कोड रेड” करार दिया है।
  • रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन को पूर्णत: मानव निर्मित करार देती है।
  • यह रिपोर्ट पिछली बार 2013 में जारी रिपोर्ट की तुलना में 21वीं सदी के लिये ज्यादा सटीक और गर्मी की भविष्यवाणी करती है।
  • मानव-जनित जलवायु परिवर्तन, विश्व के हर क्षेत्र में मौसम व जलवायु को प्रभावित कर रहा है।
  • वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की सम्पूर्ण जलवायु प्रणाली, वातावरण, महासागर, बर्फ़ की तैरती चादर व भूमि में आए बदलाव को दर्ज किया है।
  • आईपीसीसी वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को अब भी सीमित रखा जा सकता है।
  • कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों में ठोस व निरन्तर कटौती के जरिये वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है।
  • इससे अगले 20 से 30 वर्षों में वैश्विक तापमान में स्थिरता ला पाने में सफलता मिल सकती है।
  • रिपोर्ट दर्शाती है कि मानवीय गतिविधियों के प्रभावों ने जलवायु को जिस रफ़्तार से गर्म किया है, वह पिछले दो हज़ार सालों में अभूतपूर्व है।
  • वर्ष 2019 में वातावरण में CO2 की सघनता पिछले 20 लाख वर्षों में सबसे अधिक है और मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा पिछले आठ लाख वर्षों में सबसे ज़्यादा आंकी गई है।
  • इस बीच, समुद्री जल स्तर के वैश्विक औसत में आई बढ़ोत्तरी, वर्ष 1900 से, उससे पहले के तीन हज़ार सालों में सबसे अधिक है।
  • रिपोर्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक सतह तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। यह 1850-1900 के अवधि की तुलना में 2001-2020 की अवधि में 0.99 [0.84-1.10]ºC अधिक थी।
  • वहीं वर्ष 2011-2020 की अवधि में 1.09 [0.95-1.20]ºC अधिक था।
  • अगले 20 वर्षों में औसतन, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के 1.5 डिग्री सेल्सियस या उससे भी पार चले जाने की आशंका है।
  • आईपीसीसी वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि 21वीं सदी में वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी वास्तविकता बन सकती है।
  • उन्होंने स्पष्ट किया है कि कार्बन डाईऑक्साइड व अन्य ग्रीनहाउस गैसों में त्वरित ढंग से ठोस कटौतियों के अभाव में, वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य हासिल कर पाना, पहुंच से दूर हो जाएगा।
  • जलवायु परिवर्तन पर गठित इस आयोग की समीक्षा, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के ऐतिहासिक रुझानों और मानव-जनित उत्सर्जनों के कारण जलवायु प्रणाली पर होने वाले असर की समीक्षा पर आधारित है।
  • विशेषज्ञों ने बताया कि मानव गतिविधियां, प्रमुख जलवायु प्रणालियों के सभी घटकों पर असर डालती हैं। इनमें से कुछ परिवर्तन दशकों में देखे जा सकते हैं, जबकि अन्य, सदियों में सामने आते हैं।
  • ताप लहरों, सूखा, चक्रवाती तूफ़ानों सहित चरम मौसम की घटनाओं में देखे गए बदलावों और मानवीय गतिविधियों से इन पर होने वाले असर में वृद्धि हुई है।
  • आईपीसीसी वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले दशकों में सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार बढ़ेगी।
  • वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर ताप लहर घटनाओं की संख्या बढ़ेगी, गर्मी के मौसम लम्बे और शीत ऋतु की अवधि कम हो जाएगी।
  • 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की स्थिति में, तापमान का स्तर इतना अधिक होने की आशंका है, जिसके मानवीय स्वास्थ्य और कृषि पर गम्भीर दुष्प्रभाव होंगे।
  • पहले कभी 100 वर्षों में एक बार होने वाली चरम समुद्री जलस्तर की घटना, इस सदी के अंत तक हर वर्ष घटित हो सकती है।
  • रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक तापमान में और बढोत्तरी होने की स्थिति में, सदैव जमी रहने वाली बर्फ के पिघलने की गति तेज़ होगी, ग्लेशियर व बर्फ़ की चादर गलने लगेगी और गर्मियों में आर्कटिक समुद्री बर्फ़ का नुक़सान होगा।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने वर्ष 1988 में, जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित विज्ञान की समीक्षा, निहित जोखिमों और अनुकूलन व कार्बन उत्सर्जन में कटौती की रणनितियां पेश करने के लिये IPCC को गठित किया था।

संबंधित लिंक भी देखें…
https://www.ipcc.ch/report/ar6/wg1/
https://news.un.org/en/story/2021/08/1097362