योग के साथ ‘ॐ’ का फैलता दायरा

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प्रमोद भार्गव
(वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार)

इस बार योग के साथ ‘ॐ’ का दायरा भी विस्तृत हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंडीगढ़ में योग के साथ ‘ॐ’ का उच्चारण किया, वहीं बाबा रामदेव ने फरीदाबाद में योग किया तथा कई विश्व रिकॉर्ड भी बना दिये। 160 से अधिक देशों में योग दिवस मनाया गया, जिनमें 40 मुस्लिम देश शामिल हैं। इस बार 57 केंद्रीय मंत्रियों ने भारतीय सनातन संस्कृति से जुड़े इस विशिष्ट कार्यक्रम में भागीदारी की। पिछले माह केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने 21 जून को योग-दिवस के अवसर पर एक दिशा-निर्देश जारी करके नया विवाद मोल ले लिया था, लेकिन अब इस पर बाबा रामदेव ने ‘ॐ’ के साथ पर ‘आमीन’ बोलने के विकल्प का सुझाव देकर इस विवाद पर विराम लगा दिया। हालांकि सनातन भारतीय मिथक और प्रतीक चिह्नों पर खड़े किए जा रहे विवादों से लाभ यह हो रहा है, कि अब इनका प्रतिपक्ष यानी वैज्ञानिक स्वरूप सामने आने लगा है, इस कारण कई धर्मों के लोग इन्हें स्वेच्छा से अपनाने लगे हैं। योग को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस के रूप में मान्यता मिलते वक्त यही हुआ और अब ॐ के साथ भी ऐसी ही संभावनाएं बनती दिख रही हैं। दरअसल योग हो या ‘ॐ’ ये ऐसी शारीरिक क्रियाएं और उच्चारण हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए आश्चर्यजनक रूप से लाभदायी हैं। शरीर विज्ञानी भी अब इन विलक्षण विधाओं को लंबे शोध और परीक्षण के बाद विज्ञान-सम्मत मानने लगे हैं।
हमारी दर्शन परंपरा में माना गया है कि संसार का सार ‘वेद’ है और वेद का सार है, ‘गायत्री मंत्र और गायत्री मंत्र का भी सार है, ‘प्रणब’। प्रणब का अर्थ है, ओम! इसे एक अक्षर ध्वनि के प्रतीक स्वरूप ‘ॐ’ आकार में लिखा व पढ़ा जाता है। सनातन धर्म में इस अक्षर की मान्यता पूर्ण ब्रह्म या अविनाशी परमात्मा के रूप में प्रचलित है। अविनाशी परमात्मा को व्यावहारिक अर्थ में एक ऐसी ऊर्जा मान सकते हैं, जो नष्ट न हो, जिसकी निरंतरता बनी रहे। इस रूप में ॐ सर्वाधिक, सारगर्भित और प्रभावी अभिव्यक्ति है। लंबे समय से देश-विदेश में चले शोधों के निष्कर्ष से भी पुष्टि हुई है कि ॐ का नियमित जाप कई तरह के असाध्य रोगों के उपचार में रामबाण सिद्ध हुआ है।
आजादी के बाद से लेकर अब तक वामपंथी वैचारिक प्रभाव के चलते विश्व प्रसिद्ध और लोकमान्य भारतीय मिथकीय चरित्र और हिंदू प्रतीक चिह्नों को वह आधिकारिक महत्त्व नहीं मिला, जिसकी समाज को जरूरत थी। जबकि पश्चिम में अप्रकट रूप से वेद, पुराण और उपनिषदों से जुड़ी हजारों वर्ष पुरानी ज्ञान परंपराओं की विशिष्टताओं के वैज्ञानिक विश्लेषण में जुटे रहे। वैज्ञानिक सूत्रों का यही अथाह भंडार पश्चिम की वैज्ञानिक उपलब्धियों का मूलाधार रहा है। बावजूद वे भारत को अंधविश्वासी बताते रहे हैं। यही नहीं हमारे जो वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार विजेता रहे हैं, उनमें से ज्यादातर की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में हुई थी। संस्कृत ग्रंथों से मिले सूत्रों को ही उन्होंने वैज्ञानिक उपलब्धियों का आधार बनाया था। इन वैज्ञानिकों की जीवनियां पढ़ने से इन रहस्यों का खुलासा हुआ है।
खासतौर पर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में ॐ के उच्चारण और मंत्र-जाप से संबंधित जो प्रयोग हुए हैं, उन्हें विश्व की जानी-मानी विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ भी अपने अंकों में छाप चुकी है। कुछ साल पहले अमेरिका के रिसर्च एंड एक्सपेरिमेंटल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेज के दल के शोध निष्कर्ष प्रकाशित हुए थे। इस दल के प्रमुख प्राध्यापक जे. मॉर्गन के अनुसार, उनके दल ने सात वर्षों तक दिल और दिमाग से परेशान रोगियों पर ॐ के उच्चारण के प्रभाव के परीक्षण किए हैं। इन परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि ॐ का अलग-अलग आवृत्तियों और ध्वनियों में नियमित जाप आश्चर्यजनक ढंग से असरकारी रहा है। ॐ का मंत्र जाप पेट, छाती और मस्तिष्क में एक स्पंदन पैदा करता है। यह कंपन इतना विलक्षण व प्रभावी होता है कि इससे मृत कोशिकाएं पुनर्जीवन प्राप्त कर लेती हैं और नई कोशिकाओं का भी निर्माण होता है। ॐ का उच्चारण मस्तिष्क से लेकर नाक, कान, गला तथा फेफड़ों में प्रकंपन पैदा कर तरंगों की गति में समन्वय बिठाकर संतुलित करने का काम करता है।
इस परीक्षण में 2500 पुरुष और 2000 महिलाओं को शामिल किया गया था। इनमें से कईयों की बीमारी अंतिम पड़ाव पर थी। मसलन रोगी मरणासन्न अवस्था में पहुंच गए थे। प्राध्यापक मॉर्गन ने धीरे-धीरे इन्हें दी जाने वाली दवाओं में से वही जारी रखीं, जो जीवन रक्षक दवाएं थीं। चिकित्सीय देख-रेख में रोगियों को रोजाना सुबह एक घंटे विभिन्न आवृत्तियों में ॐ का जाप कराया जाता था। इस काम के लिए योग और ध्यान के मर्मज्ञ प्रशिक्षक रखे गए। प्रत्येक तीन माह में एक बार मरीजों का शारीरिक परीक्षण किया गया। मंत्र-जाप की इस नियमित प्रक्रिया चलने के चार वर्ष बाद निकले परिणाम चौंकाने वाले थे। 70 प्रतिशत पुरुष और 85 प्रतिशत महिलाओं के रोगों का 90 प्रतिशत रोग का निदान हो गया था। हालांकि जिन लोगों के शरीर में मर्ज अंतिम चरण में पहुंच गया था, उन्हें जरूर महज 10 फीसदी ही लाभ मिला।
इस अध्ययन के कुछ समय पहले भारतीय मूल की आयुर्वेदाचार्य सुश्री प्रतिमा रायचुर ने अमेरिका के ही ओहियो विवि. में वैदिक ऋचाओं से जुड़़ा एक प्रयोग किया। इसमें पाया गया कि वेदों की ऋचाओं के उच्चारण से कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि धीमी पड़ जाती है। इसका प्रयोग चूहों पर करके देखा गया। इस तरह के मरीजों को कीमोथैरेपी की भारी खुराक दी जाती है, साथ ही ऑटोलोगस स्तंभ कोशिकाओं का प्रत्यारोपण भी किया जाता है। यदि इन मरीजों को म्यूजिक थैरेपी मसलन संगीत पद्धति के माध्यम से वेदों की ऋचाएं सुनाई जाएं तो मरीजों की उद्धिग्नता कम होती है और कीमोथैरेपी का कष्ट भी झेलना नहीं पड़ता है। चूहों पर सफल प्रयोग के बाद प्रतिमा ने यही प्रयोग कैंसर से ग्रस्त अपने पिता पर भी किया था। उनके पिता को मायलोमा था। यह एक तरह का अस्थि-मज्जा कैंसर होता है।
इन प्रयोगों की सफलता के बाद अमेरिका के न्यूजर्सी प्रांत की रटगर्स यूनिवसिर्टी में जो भारतीय छात्र हिंदू जीवन शैली में विश्वास रखते हैं, वे इस शैली में शामिल प्रतीक चिह्नों और मंत्रों के रहस्यों को जानने की दिशा में अनुसंधान करें। इन्हें वैज्ञानिक रूप में जानने-समझने के लिए विवि में हिंदुत्व से संबंधित छह प्रकार के पाठ्यक्रम तैयार किए। इनमें वाचन परंपरा, हिंदू संस्कार, महोत्सव एवं परंपराओं के प्रतीक योग और ध्यान शामिल किए गए। अब इस पाठ्यक्रम को विस्तार देते हुए इसमें शास्त्रीय संगीत और लोक नृत्य भी शामिल कर लिए गए हैं। इस तरह के अध्ययनों से खास बात सामने आई वह यह थी कि भारतीय मिथकों, प्रतीकों, योग और ध्यान को समझने के नजरिए से पश्चिम के दृष्टिकोण में खुलापन आया है और स्वीकार्यता बढ़ी है। इस स्वीकार्यता का एक सकारात्मक परिणाम यह भी निकला है कि भारत के जो पूर्वाग्रही कथित मार्क्सवादी प्रगतिशील हैं, उनकी सोच भी लचीला रुख अपनाने लगी है। अलबत्ता धर्म से जुड़ी कट्टरता जरूर इतर विषय है।
ॐ सृष्टि का एकमात्र ऐसा स्वर है, जिसके उच्चारण में प्राण वायु शरीर के भीतर जाती है। जबकि शेष सभी उच्चारणों में प्राण वायु बाहर आती है। यानी ॐ के उच्चारण से हम अधिकतम प्राण वायु अर्थात ऊर्जा ग्रहण करते हैं। अब हम ‘अ’ का उच्चारण करते हैं, तो हमारे ब्रह्मरंध्र से लेकर कंठ तक स्पंदन होता है। जब ‘उ’ का उच्चारण करते हैं, तो कंठ से लेकर नाभि तक शरीर स्पंदित होता है और जब ‘म’ का उच्चारण करते हैं, तो नाभि से लेकर पैरों तक का भाग प्रकंपित होता है। इस स्पंदन से हर तरह के रोग नियंत्रित होते हैं। साफ है, ॐ का उच्चारण शरीर और मन को विभिन्न स्तरों पर ऊर्जा देने का काम करता है। अर्थात इसके स्पष्ट उच्चारण से जो स्पंदन पैदा होता है, वह हमारी संपूर्ण शारीरिक रचना को प्रभावित करता है। इसके सही उच्चारण से पंचमहाभूत पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि का शरीर में संतुलन बना रहता है। शरीर में इन तत्त्वों के असंतुलन से ही बीमारियां और विकार उत्पन्न होते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञानियों का मानना है कि मेटाबोलिक डिसऑर्डर यानी चयापचय असंतुलन के कारण ही शारीरिक व्याधियां पनपती हैं। इसलिए ॐ के जाप को नकारने की बजाय जरूरत तो यह है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के इस अनूठे अक्षर को और गहराई से परखा जाए।

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